छत्तीसगढ़ के खैरागढ़ जिले में नकली शराब बनाने और बेचने का एक बड़ा मामला सामने आया है।

पुलिस ने एक फार्म हाउस में चल रही नकली शराब की फैक्ट्री का पर्दाफाश किया, जहां असली शराब की बोतलों में नकली शराब भरकर बेचा जा रहा था। इस घटना ने पूरे क्षेत्र में सनसनी फैला दी है, क्योंकि यह नकली शराब हूबहू असली सरकारी शराब की तरह दिखने और स्वाद में भी वैसी ही लगने वाली थी। मामले में पुलिस ने 7 आरोपियों को गिरफ्तार किया है, जबकि कुछ अन्य आरोपियों की तलाश जारी है।
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नकली शराब की फैक्ट्री: दुर्ग के फार्म हाउस में बना अड्डा
पुलिस की जांच के अनुसार, नकली शराब बनाने का यह गोरखधंधा दुर्ग के धमधा स्थित रौंदा गांव के एक फार्म हाउस में चल रहा था। यह फार्म हाउस नकली शराब बनाने का केंद्र बन गया था, जहां आरोपी स्प्रिट, पानी और कुछ केमिकल की मदद से नकली शराब बनाते थे। इस गिरोह के सदस्य सरकारी शराब की खाली बोतलें इकट्ठा करते थे और फिर इनमें नकली शराब भरकर उन्हें असली जैसा दिखाने के लिए नकली लेबल और ढक्कन का इस्तेमाल करते थे।
आरोपी खुद पीकर करते थे क्वालिटी टेस्ट
गिरोह के मुख्य सरगना नरसिंह वर्मा ने नकली शराब बनाने का पूरा जिम्मा अपने ऊपर लिया हुआ था। सबसे चौंकाने वाली बात यह थी कि वह खुद पीकर इस नकली शराब की क्वालिटी चेक करता था। नागपुर से मंगाए गए नकली लेबल और ढक्कन की मदद से शराब की बोतलें बिल्कुल असली दिखती थीं। इसके बाद गिरोह के सदस्य इन बोतलों को आसपास के गांवों और इलाकों में बेच देते थे।
कैसे हुआ पर्दाफाश: खैरागढ़ पुलिस की कार्रवाई
खैरागढ़ एसपी त्रिलोक बंसल ने बताया कि पुलिस को एक गुप्त सूचना मिली थी, जिसके आधार पर गंडई थाना क्षेत्र के ग्राम नर्मदा में स्थित मिर्ज़ा वारिश बेग के घर में दबिश दी गई। पुलिस की इस कार्रवाई में 7 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया। गिरोह के मुख्य आरोपी नरसिंह वर्मा और आशीष मंडावी की पहचान जेल में हुई थी, जहां दोनों की मुलाकात हुई थी। जेल से छूटने के बाद उन्होंने पैसे कमाने के लालच में नकली शराब की फैक्ट्री शुरू करने का प्लान बनाया।
कैसे होती थी शराब की तस्करी?
आरोपी गिरोह ने इस काम को बखूबी प्लान किया हुआ था। नकली शराब बनाने की जिम्मेदारी नरसिंह वर्मा ने ली, जबकि नागपुर से नकली लेबल और ढक्कन लाने का काम आशीष मंडावी करता था। सरकारी शराब की खाली बोतलें इकट्ठा करने के बाद, इनमें स्प्रिट, पानी और केमिकल मिलाकर शराब तैयार की जाती थी। इसके बाद इन बोतलों पर असली जैसे दिखने वाले नकली लेबल और ढक्कन लगाए जाते थे, जिससे ये बोतलें पूरी तरह से असली शराब की तरह दिखने लगती थीं।
मुख्य आरोपी और उनकी रणनीति
आरोपी का नाम | काम |
---|---|
नरसिंह वर्मा | शराब बनाना और उसकी गुणवत्ता जांचना |
आशीष मंडावी | नकली लेबल और ढक्कन लाना, नागपुर से सामग्री की सप्लाई करना |
अन्य आरोपी | खाली बोतलें इकट्ठा करना और शराब बेचने का काम |
नकली शराब का कारोबार कैसे फैलता था?
जैसे ही नकली शराब तैयार हो जाती थी, गिरोह के सदस्य इसे आसपास के गांवों में बेचने के लिए निकल पड़ते थे। ग्रामीण इलाकों में इस नकली शराब की मांग काफी बढ़ गई थी, क्योंकि इसे बेहद सस्ते दामों पर बेचा जा रहा था। लोगों को इसका स्वाद असली शराब जैसा ही लग रहा था, जिससे वे धोखा खा जाते थे।
पुलिस की आगे की योजना: बाकी आरोपियों की तलाश जारी
हालांकि पुलिस ने इस मामले में 7 आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है, लेकिन नकली लेबल और ढक्कन उपलब्ध कराने वाले अन्य आरोपियों की तलाश अभी भी जारी है। पुलिस को शक है कि इस गिरोह के तार अन्य राज्यों से भी जुड़े हो सकते हैं, जहां से ये नकली लेबल और अन्य सामग्री मंगाई जाती थी।
आगे की कार्रवाई: नकली शराब पर सख्त कानून लागू करने की जरूरत
यह घटना न केवल कानून व्यवस्था के लिए एक बड़ी चुनौती है, बल्कि यह लोगों की जान के साथ भी खिलवाड़ कर रही है। नकली शराब से होने वाले स्वास्थ्य नुकसान को ध्यान में रखते हुए, इस पर सख्त कानून और कठोर कार्रवाई की जरूरत है। इस मामले ने एक बार फिर दिखा दिया है कि कैसे कुछ लोग पैसे के लालच में जनता की सुरक्षा और स्वास्थ्य को नजरअंदाज कर देते हैं।
निष्कर्ष
दुर्ग के इस नकली शराब फैक्ट्री के खुलासे ने छत्तीसगढ़ में शराब माफियाओं की गतिविधियों को उजागर कर दिया है। पुलिस की यह कार्रवाई सराहनीय है, लेकिन यह घटना बताती है कि अभी भी नकली शराब के कारोबार पर पूरी तरह से रोक लगाने के लिए और भी सख्त कदम उठाने की आवश्यकता है। जनता को भी इस तरह के मामलों के प्रति जागरूक रहना चाहिए और नकली शराब से दूर रहना चाहिए।
इस घटना से यह साफ हो गया है कि अपराधी अपने स्वार्थ के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं, और उन्हें रोकने के लिए कानून के साथ-साथ जनता की जागरूकता भी जरूरी है।