दलितों का भारत बंद 21अगस्त 2024: एससी-एसटी आरक्षण में उप-कोटा और क्रीमी लेयर पर दलित समाज में उबाल
दलितों का भारत बंद 21अगस्त 2024: , सुप्रीम कोर्ट ने पिछले सप्ताह एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए एससी-एसटी आरक्षण में उप-कोटा तय करने को मंजूरी दी है। अदालत ने कहा कि अगर राज्य सरकारों को लगता है कि एससी और एसटी वर्ग की कोई जाति ज्यादा पिछड़ी है, तो उसके लिए उप-कोटा तय किया जा सकता है। इसके साथ ही, 7 जजों की संवैधानिक पीठ ने 4-3 के बहुमत से कहा कि एससी और एसटी वर्ग में क्रीमी लेयर की भी पहचान होनी चाहिए। इस वर्ग में क्रीमी लेयर के तहत आने वाले लोगों को आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए, बल्कि उसी समाज के गरीबों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने दलित समाज में बड़ा विवाद खड़ा कर दिया है। इस लेख में हम इस मुद्दे पर विस्तृत चर्चा करेंगे।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला: उप-कोटा की मंजूरी और क्रीमी लेयर की पहचान
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में एससी और एसटी आरक्षण में उप-कोटा तय करने को मंजूरी दी है। इसका मतलब यह है कि राज्य सरकारें अब इन वर्गों में सबसे ज्यादा पिछड़ी जातियों के लिए अलग से कोटा निर्धारित कर सकती हैं। इस फैसले का एक उद्देश्य यह है कि सबसे ज्यादा पिछड़ी जातियों को भी आरक्षण का पूरा लाभ मिल सके।
इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट ने एससी और एसटी वर्ग में क्रीमी लेयर की पहचान की आवश्यकता पर भी जोर दिया है। कोर्ट का मानना है कि इस वर्ग में क्रीमी लेयर के तहत आने वाले लोगों को आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए। इसकी जगह, इसी समाज के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
कोर्ट के फैसले पर दलित समाज की प्रतिक्रिया
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद दलित समाज में तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिली है। सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स पर इसके खिलाफ विरोध तेज हो गया है और कई दलित संगठनों ने 21 अगस्त को भारत बंद का ऐलान किया है। बसपा प्रमुख मायावती ने भी इस फैसले का विरोध किया है और इसे आरक्षण को खत्म करने की साजिश करार दिया है।
मायावती का विरोध: “आरक्षण खत्म करने की साजिश”
बसपा प्रमुख मायावती ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का कड़ा विरोध करते हुए कहा है कि यह आरक्षण को खत्म करने की साजिश है। मायावती का मानना है कि उप-कोटा के माध्यम से सरकारें अपनी मर्जी से किसी भी जाति को कोटा दे सकेंगी और इससे राजनीतिक हित साधा जा सकेगा।
क्रीमी लेयर पर मायावती का रुख
मायावती ने क्रीमी लेयर की पहचान की आवश्यकता पर भी कड़ा विरोध जताया है। उन्होंने कहा कि यह सही है कि दलित समाज में 10 फीसदी लोगों के पास पैसा आया है और वे उच्च पदों पर पहुंचे हैं, लेकिन उनके बच्चों से आरक्षण का लाभ नहीं छीना जा सकता। मायावती का तर्क है कि पैसा आने के बाद भी जातिवादी मानसिकता वाले लोगों के विचार नहीं बदले हैं और समाज में स्वीकार्यता अभी भी एक मुद्दा है।
भाजपा और कांग्रेस की प्रतिक्रिया
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर भाजपा और कांग्रेस ने कोई विशेष प्रतिक्रिया नहीं दी है। हालांकि, आगरा की कैंट सीट से विधायक जी.एस. धर्मेश ने इस मामले पर अपनी आवाज बुलंद की है। उन्होंने 21 अगस्त को भारत बंद का समर्थन करते हुए समाज के प्रतिनिधियों के साथ बैठक की है। जी.एस. धर्मेश दलित समुदाय से आते हैं और उनका मानना है कि एससी-एसटी आरक्षण से किसी तरह का खिलवाड़ ठीक नहीं है।
भाजपा विधायक जी.एस. धर्मेश की प्रतिक्रिया
भाजपा विधायक व पूर्व राज्यमंत्री डॉ. जी.एस. धर्मेश ने कहा कि एससी-एसटी आरक्षण से किसी तरह का खिलवाड़ ठीक नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि जल्द ही एक प्रतिनिधिमंडल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने जाएगा और उनसे इस फैसले को कैबिनेट में बदलने की मांग उठाई जाएगी। जी.एस. धर्मेश का मानना है कि यह फैसला एससी-एसटी अत्याचार निवारण एक्ट के फैसले पर कैबिनेट में हुए संशोधन की तरह होना चाहिए।
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चिराग पासवान और चंद्रशेखर आजाद का विरोध
चिराग पासवान और नगीना से सांसद चंद्रशेखर आजाद ने भी इस फैसले का विरोध किया है। चिराग पासवान ने इस मामले में पुनर्विचार याचिका दाखिल करने की बात कही है। चंद्रशेखर आजाद ने भी इस फैसले को अस्वीकार्य बताया है और इसके खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की है।
दलित संगठनों का भारत बंद
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ दलित संगठनों ने 21 अगस्त को भारत बंद का ऐलान किया है। दलित समाज के कई संगठनों और नेताओं का मानना है कि यह फैसला भेदभावपूर्ण है और इसे तुरंत वापस लिया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पीछे के तर्क
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला एक महत्वपूर्ण कदम है जिसका उद्देश्य आरक्षण के लाभ को सबसे ज्यादा पिछड़े लोगों तक पहुंचाना है। उप-कोटा के माध्यम से राज्य सरकारें अब उन जातियों को विशेष रूप से लाभ पहुंचा सकती हैं जो अब भी बहुत पिछड़ी हुई हैं।
क्रीमी लेयर की पहचान की आवश्यकता
सुप्रीम कोर्ट का क्रीमी लेयर की पहचान पर जोर देना यह सुनिश्चित करने के लिए है कि आरक्षण का लाभ केवल उन्हीं लोगों को मिले जो वास्तव में जरूरतमंद हैं। क्रीमी लेयर के तहत आने वाले लोग जो आर्थिक रूप से मजबूत हो चुके हैं, उन्हें आरक्षण के लाभ से वंचित किया जाना चाहिए ताकि इस समाज के गरीबों को प्राथमिकता दी जा सके।
सामाजिक और राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने देशभर में सामाजिक और राजनीतिक प्रतिक्रियाओं को जन्म दिया है। एक तरफ जहां कुछ लोग इस फैसले का स्वागत कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ दलित समाज के बड़े हिस्से में उबाल देखा जा रहा है।
भविष्य की दिशा
इस फैसले के बाद यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि राज्य सरकारें कैसे उप-कोटा तय करती हैं और क्रीमी लेयर की पहचान कैसे की जाती है। यह भी देखा जाएगा कि दलित समाज का विरोध किस हद तक जाता है और क्या इस मुद्दे पर कोई समझौता या संशोधन हो सकता है।
निष्कर्ष: दलितों का भारत बंद 21 अगस्त 2024
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला एक महत्वपूर्ण और विवादास्पद कदम है जिसने समाज में विभिन्न प्रतिक्रियाएं उत्पन्न की हैं। जहां एक तरफ इस फैसले का उद्देश्य आरक्षण के लाभ को सबसे ज्यादा पिछड़े लोगों तक पहुंचाना है, वहीं दूसरी तरफ दलित समाज के बड़े हिस्से में इसका कड़ा विरोध हो रहा है।ST SC सुप्रीम कोर्ट की फसिलो से भयानक नाराज है जिसके कारण 21 अगस्त 2024 को भारत बंद करने का एलान किया गया है। जिसे दलितों काभारत बंद 21 अगस्त 2024
अब देखना यह होगा कि सरकार और न्यायपालिका कैसे इस मुद्दे को सुलझाते हैं और क्या कोई ऐसा समाधान निकलता है जो सभी पक्षों को संतुष्ट कर सके। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न केवल कानूनी बल्कि सामाजिक दृष्टिकोण से भी एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हो सकता है।
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